बेसिस क्या है?
फाइनेंस में बेसिस तय करने के कई तरीके होते हैं, लेकिन यह आमतौर पर टैक्स की गणना करते समय निवेश के ट्रांज़ैक्शन से जुड़े खर्च और उनकी कीमत के बीच का अंतर बताता है. इसका संबंध व्यापक शब्दावली से है जैसे, कॉस्ट बेसिस या टैक्स बेसिस, जिनका इस्तेमाल खासतौर पर तब किया जाता है, जब इनकम टैक्स भरते समय पूंजीगत लाभ और हानि की गणना की जाती है. इसके विपरीत, कमोडिटी की स्पॉट प्राइज़ और फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट की रिलेटिव प्राइज़ के बीच के अंतर को भी बेसिस कहा जाता है.
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कॉस्ट बेसिस क्या होता है?
टैक्सेशन के लिए किसी सिक्योरिटी की मूल वैल्यू को कॉस्ट बेसिस कहते हैं. लाभांश, स्टॉक स्प्लिट और कैपिटल डिस्ट्रीब्यूशन के लिए अक्सर खरीदी मूल्य को एडजस्ट किया जाता है. इस वैल्यू का इस्तेमाल पूंजीगत लाभ तय करने के लिए किया जाता है, जो कि सिक्योरिटी के कॉस्ट बेसिस और वर्तमान मार्केट मूल्य के बीच जो अंतर होता है उसके बराबर होता है.
मुख्य रूप से, टैक्स से जुड़े मामलों के लिए कॉस्ट बेसिस (जिसे टैक्स बेसिस के नाम से भी जाना जाता है) को ट्रैक करना ज़रूरी होता है. अगर इसे अमल में न लाया जाए, तो हो सकता है कि अधिकांश निवेशक इस तरह के विस्तृत रिकॉर्ड मेंटेन करने के लिए प्रोत्साहित न हों. शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन पर आय की नियमित दरों के हिसाब से टैक्स लिया जा सकता है, इसलिए जब भी संभव हो तब शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन को कम करना फायदेमंद होता है. दूसरी ओर, एक वर्ष से अधिक समय के लिए रखी गई सिक्योरिटीज़ पर लॉन्ग-टर्म निवेश के हिसाब से टैक्स लिया जा सकता है, जिसके लिए दरें बहुत कम होती हैं.
सही टैक्स बेसिस का इस्तेमाल करना बहुत ज़रूरी होता है, खासतौर पर तब, जब आप नकद कमाई का विकल्प चुनने के बजाय डिविडेंड री-इन्वेस्टमेंट (लाभांश को दोबारा निवेश करना) और कैपिटल गेन डिस्ट्रीब्यूशन विकल्प को चुनते हैं. डिस्ट्रीब्यूशन को फिर से निवेश करने से आपके निवेश का टैक्स बेसिस बढ़ सकता है. अगर आप कम टैक्स का भुगतान करने के लिए कम पूंजी लाभ रिपोर्ट करना चाहते हैं, तो आपके पास उसका हिसाब होना चाहिए. अगर उच्च टैक्स बेसिस का लाभ नहीं लिया गया है, तो आपको फिर से निवेश किए गए डिस्ट्रीब्यूशन पर डबल टैक्स देना पड़ सकता है.
फ्यूचर्स मार्केट में बेसिस क्या है?
फ्यूचर मार्केट में, कमोडिटी की कैश वैल्यू और उसी कमोडिटी की फ्यूचर वैल्यू के बीच अंतर को बेसिस कहा जाता है. यह एक ऐसा महत्वपूर्ण विषय है, जिसे पोर्टफोलियो मैनेजर और ट्रेडर्स को समझना चाहिए, क्योंकि कैश और फ्यूचर्स की कीमत के बीच का संबंध हेजिंग कॉन्ट्रैक्ट की वैल्यू को प्रभावित करता है. हालांकि, यह कॉन्सेप्ट थोड़ा सा अस्पष्ट हो सकता है क्योंकि निकटतम कॉन्ट्रैक्ट की अंतिम तारीख तक कमोडिटी की स्पॉट और रिलेटिव कीमतों के बीच अंतर होता है. इसीलिए, बेसिस हमेशा पूरी तरह से सही नहीं होता.
फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की अंतिम तारीख और स्पॉट कमोडिटी के बीच समय के अंतर के कारण आने वाले बदलाव के अलावा, प्रोडक्ट की विभिन्न क्वॉलिटी और डिलीवरी क्षेत्रों के कारण भी कीमतों में उतार-चढ़ाव आ सकते हैं. आमतौर पर, निवेशक कैश डिलीवरी या प्रोडक्ट पर मिलने वाले प्रॉफिट को मापने के लिए बेसिस का उपयोग करते हैं. इसी प्रकार, इसका उपयोग आर्बिट्रेज के अवसरों का पता लगाने के लिए किया जाता है.
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बेसिस ट्रेडिंग क्या है?
बेसिस ट्रेडिंग ट्रांज़ैक्शन करने के लिए, आपको कम करके आंकी जानी वाली कमोडिटी, डेरिवेटिव, या अंडरलाइंग एसेट के लिए लॉन्ग पोजीशन लेनी होगी और अगर सिक्योरिटीज़ को उनकी तय वैल्यू लिमिट से अधिक आंका गया है तो एक शॉर्ट पोजिशन लेनी होगी.
आइए हम समझते हैं कि लॉन्ग (एसेट खरीदना) और शॉर्ट पोजीशन (एसेट बेचना) कैसे काम करती हैं.
- लॉन्ग पोजीशन: ट्रेडिंग में, लॉन्ग पोजीशन का मतलब है ऐसे एसेट खरीदना और उनका स्वामित्व लेना, जिनमें फायदा होने की संभावनाएं हों अर्थात, जिनकी भविष्य में वैल्यू बढ़ने की संभावना हो.
- शॉर्ट पोजीशन: लॉन्ग पोजीशन के बिल्कुल विपरीत शॉर्ट पोजीशन तब ली जाती है जब आप किसी सिक्योरिटी की कीमत कम होने का पूर्वानुमान करते हैं. इन एसेट को यह सोच कर बेचा जाता है कि ज़्यादा किफायती कीमत पर फिर से खरीद लिया जाएगा.
हालांकि, उचित और बड़े लाभ प्राप्त करने के लिए, आपको लॉन्ग या शॉर्ट पोजीशन लेने से पहले पर्याप्त लेवरेज राशि हाथ में रखनी होगी. इसे एक ऐसा अहम जोखिम माना जाता है, जो आमतौर पर आकर्षक रिटर्न पाने की उम्मीद में लिया जाता है.
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बेसिस ट्रेडिंग रिस्क क्या है?
बेसिस ट्रेडिंग का सबसे बड़ा जोखिम है लेवरेज. आसान शब्दों में, उधार ली गई राशि से ट्रेडिंग करने को लेवरेज कहा जाता है. आमतौर पर, निवेश से संभावित लाभ को बढ़ाने के लिए इसे एक तरकीब की तरह इस्तेमाल किया जाता है. वैसे तो, इस तरीके में बहुत ज़्यादा जोखिम होता है, लेकिन सोच-समझकर करने पर यह फाइनेंसिंग के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकता है. भारी रिटर्न की संभावना कई ट्रेडर्स को लेवरेज का जोखिम उठाने के लिए प्रोत्साहित करती है. जब लेवरेज का उपयोग करके शॉर्ट पोज़ीशन ली जाती है, तो नुक्सान का जोखिम असीमित हो जाता है क्योंकि एसेट की कीमत में कोई ऊपरी सीमा नहीं होती. इसलिए, लिवरेज का उपयोग करके बड़े मूल्य की बेसिस ट्रेडिंग करने से पहले इसके फायदे व नुकसानों को अच्छी तरह से समझें.
सारांश
फाइनेंस में, बेसिस को कई तरीकों से परिभाषित किया जा सकता है. आमतौर पर, यह निवेश का खर्च या कुल कॉस्ट होता है. इसमें मुख्य रूप से टैक्स लागू होता है क्योंकि यह प्रोडक्ट के जुड़ी लागतों की ओर इशारा करता है. बेसिस, सिक्योरिटी के स्पॉट मूल्य और उसके संबंधित डेरिवेटिव फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की वैल्यू के बीच के अंतर को भी दर्शाता है. यदि कोई निर्देश नहीं दिया जाता है तो बेसिस की गणना फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट के निकटतम महीने की कीमत का उपयोग करके की जाती है.